मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के आष्टा गाँव में 15 जुलाई 1937 को जन्में और इंदौर में पले बढ़े। वे जीते जी अपने विचार, व्यवहार और सक्रियता से व्यक्ति के बजाय सजग संस्था बन गए थे। ऐसी संस्था जो समाज की पहरूआ हो।
पुस्तकें : चम्बल की बन्दूकें गांधी के चरणों में; मसि कागद; हिन्दू होने का धर्म; कागद कारे; जीने के बहाने; लूटियन के टिले का भूगोल; धन्न नरमदा मइया हो; जब तोप मुकाबिल हो; खेल सिर्फ खेल नहीं है; इक्कीसवीं सदी–पहला दशक; आगे अन्धी गली है; कहने को बहुत कुछ था।
‘हिन्दू होने का मतलब’ प्रभाष जी के एक लेख और एक पुस्तक की भूमिका के रूप में लिखे गये दीर्घ निबंध का संकलन है। यह पुस्तक हमारे समाज की सामाजिक और वास्तविक परम्परा को ठोस तर्कों के साथ सामने रखती है। खास बात यह है कि प्रभाष जोशी अपना वैचारिक विमर्श हिंदू आचार-व्यवहार के धरातल पर ही बुनते हैं; इसीलिए हिंदू धर्म और हिंदुत्व का मतलब गहरे में उतरकर समझाते हैं।
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