Description
मदनलाल ‘मधु’
22 मई 1925 को फ़िरोजपुर (पंजाब) में जन्म लेने वाले मदनलाल मधु 1957 में अनुवादक के रूप में रूस पहुँचे। शुरू में मधु जी ने सभी रूसी रचनाओं के अनुवाद अँग्रेज़ी से किए, लेकिन बीस बरस रूस में रहकर रूसी सीख ली। ‘युद्ध और शान्ति’ नामक इस महारचना का अनुवाद मूल रूसी से हुआ है। इसका अनुवाद करने में मधु जी को पूरे पाँच बरस का समय लगा। इसके अलावा मधु जी को महान रूसी कवि अलिक्सान्दर पूश्किन की कविताओं और उनकी गद्य-रचनाओं के अनुवाद के लिए भी जाना जाता है। पूश्किन की रचनाओं का जैसा अनुवाद मदनलाल मधु ने किया है, वैसा अनुवाद आज तक कोई नहीं कर पाया। मास्को के प्रमुख प्रकाशकों–प्रगति प्रकाशन और रादुगा प्रकाशन में रहकर लगभग चार दशकों तक उन्होंने सौ से अधिक कालजयी रूसी रचनाओं का अनुवाद किया, जिनमें तलस्तोय और पूश्किन के अलावा मयाकोवस्की, मक्सीम गोरिकी, इवान तुर्गेनिफ़ मिख़अईल शोलअख़फ़ और रसूल हमज़ातोव आदि का साहित्य शामिल है। रूसी-भारतीय मैत्री के विकास में योग देने के लिए मदनलाल ‘मधु’ को रूस की सरकार ने विदेशियों को दिए जाने वाला सम्मान ‘पूश्किन पदक’ और भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ देकर सम्मानित किया। 07 जुलाई 2005 को लम्बी बीमारी के बाद मास्को में मधु जी का देहान्त हो गया।
पुस्तक के बारे में
“एक बार मैंने उन्हें ऐसे रूप में देखा जैसे शायद किसी ने भी न देखा हो। मैं सागर-तट के साथ-साथ इनके पास ग्रास्प्रा जा रहा था और… ठीक सागर-तट पर चट्टानों के बीच मुझे इनकी छोटी और अटपटी-सी आकृति दिखाई दी… वह गालों को हाथों पर टिकाये बैठे थे, उनकी दाढ़ी के रुपहले बाल उँगलियों के बीच से लहरा रहे थे, वह दूर सागर की ओर देख रहे थे और छोटी-छोटी, हरी लहरें चुपचाप तथा स्नेहपूर्वक उनके पाँवों के करीब आ रही थीं मानो इस बूढ़े जादूगर को अपनी दास्तान सुना रही हों… अचानक, पागलपन के एक क्षण में मैंने यह अनुभव किया कि–शायद!– वह उठकर खड़े हो जायेंगे, हाथ हिलायेंगे– और सागर गतिहीन हो जायेगा, शीशे जैसा बन जायेगा, चट्टाने हिलने-डुलने लगेगी, चिल्ला उठेगी, इर्द-गिर्द की हर चीज सजीव हो जायेगी, शोर मचाने लगेगी, विभिन्न आवाजों में अपने बारे में, उनके बारे में, उनके विरुद्ध बोलने लगेगी। इस समय मैंने क्या अनुभव किया था, उसे शब्दों में व्यक्त करना सम्भव नहीं। मेरी आत्मा में उल्लास और भय भी था और फिर सब कुछ एक सुखद विचार में घुल-मिल गया–
“ ‘जब तक यह व्यक्ति इस धरती पर विद्यमान है, मैं यतीम नहीं हूँ!’ ”
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“एक बार मैं लेनिन के यहाँ गया और क्या देखता हूँ कि ‘युद्ध और शान्ति’ का एक खण्ड मेज पर रखा है। वह बोले– ‘हाँ, तलस्तोय के क्या कहने!…’
“आँखें सिकोड़कर तथा मुस्कराते हुए वह इतमीनान से आरामकुर्सी पर बैठ गये और धीमी-धीमी आवाज में कहते गये– ‘कैसी अनूठी मिट्टी के बने हैं वह! कैसी लाजवाब हस्ती हैं!…’ ”
“यूरोप में कोई ऐसा अन्य लेखक है जिसकी उनसे तुलना की जा सकती हो?”
“और खुद ही जवाब दे दिया : ‘कोई भी नहीं।’ ”
– मक्सीम गोरिकी
‘मीर’ शब्द के रूसी भाषा में दो मतलब होते हैं– ‘दुनिया’ यानी समाज और ‘शान्ति’। तलस्तोय ने इस उपन्यास का नाम रखा था– ‘वईना ई मीर’ यानी युद्ध और दुनिया (या समाज)। 1885 में ‘वईना ई मीर’ का सबसे पहले फ़्रांसीसी भाषा में अनुवाद हुआ। फ़्रांसीसी में इसका पहला संस्करण 500 प्रतियों का था। लेकिन 1886 में जब क्लारा बेल (Clara Bell) ने पहली बार फ़्रांसीसी भाषा से इस उपन्यास का अँग्रेज़ी में अनुवाद किया तो उन्होंने उसे नाम दिया– ‘वार एण्ड पीस’ यानी ‘युद्ध और शान्ति’। अनुवाद करते हुए उन्होंने न केवल उपन्यास का नाम बदल दिया था, बल्कि उपन्यासकार लेफ़ तलस्तोय का नाम भी बदल दिया था। रूसी भाषा में ‘लेफ़’ शब्द का मतलब होता है शेर। उन्होंने रूसी शेर को अँग्रेज़ी शेर बना दिया और ‘लेफ़’ शब्द का भी अँग्रेज़ी में ‘लियो’ अनुवाद कर डाला। बस, तभी से अँग्रेज़ी और सारी दुनिया के पाठकों के लिए लेफ़ तलस्तोय ‘लियो टॉलस्टॉय’ बन गए। शायद तब तक अँग्रेज़ी पाठकों की दुनिया लेफ़ तलस्तोय से परिचित नहीं थी। लेकिन ‘वार एण्ड पीस’ ने छपने के बाद अँग्रेज़ी के पाठकों के बीच धूम मचा दी। एक ही साल में उस अनुवाद के चार संस्करण प्रकाशित हुए और सारी दुनिया में पहुँच गए। बीस से पच्चीस साल तक ‘वार एण्ड पीस’ अँग्रेज़ी का बेस्टसेलर उपन्यास बना रहा और पाठकों के बीच ये फ़ैशन हो गया था कि जिसने ‘वॉर एण्ड पीस’ नहीं पढ़ा है, उसने कुछ नहीं पढ़ा है। अँग्रेज़ी से ‘वार एण्ड पीस’ के अनुवाद दुनिया भर की भाषाओं में हुए। मूल रूसी भाषा से ‘वाईना ई मीर’ का पहला अँग्रेज़ी अनुवाद 1899 में सामने आया, जिसे अमेरिकी अनुवादक नैठन हैसकल डोल (Nathan Haskell Dole) ने प्रस्तुत किया था। लेकिन उन्होंने भी उपन्यास का नाम ‘वार एण्ड पीस’ ही रखा और लेखक का नाम भी लियो टॉलस्टॉय ही रहने दिया।
…इसी किताब से…
तलस्तोय ने यह स्वीकार किया है कि उन्होंने कई बार अपने इस उपन्यास को लिखना स्थगित किया। कई बार उन्हें ऐसा लगा कि वे ख़ुद को ठीक से अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। कई-कई बार उनकी गाड़ी पटरी से उतर गयी। लेकिन मन में ऐसी बेचैनी भरी हुई थी कि वे फिर से उपन्यास लिखना शुरू कर देते थे। कई बार उन्होंने उपन्यास को नये सिरे से लिखा। तत्कालीन रूसी साहित्यिक पत्रिकाओं में उनके इस उपन्यास के अंश छपे थे। तब इस उपन्यास का नाम था ‘त्रिकाल’। लेकिन बाद में पता लगा कि पत्रिकाओं में छपे वे सौ-सौ, डेढ़-डेढ़ सौ पृष्ठों वाले बड़े-बड़े उपन्यास-अंश इस उपन्यास में कहीं शामिल ही नहीं किये गये हैं। लेफ़ तलस्तोय ने ये सात साल बड़े तनाव में गुज़ारे और बड़ी मेहनत की। तलस्तोय से ज़्यादा उनकी पत्नी सोफ़िया ने इस उपन्यास को लिखने में परिश्रम किया। तलस्तोय सुबह तड़के उठकर लिखना शुरू कर देते थे और दोपहर बारह बजे तक लिखते थे। रात नौ बजे के बाद सोफ़िया (या सोनिया) का काम शुरू होता था। उन्हें वे सारे पन्ने रातभर में अपने सुलेख में लिखने होते थे और उनका सम्पादन करना होता था। सुबह उठकर तलस्तोय पहले उन पन्नों को पढ़ते थे, जिन्हें सोफ़िया ने फिर से लिखकर रखा है। वे सोफ़िया द्वारा सुलेख में लिखी गयी उस प्रति में फिर कुछ बदलाव कर देते थे। सोफ़िया उन पन्नों को फिर से सुलेख में लिखती थी।
…इसी किताब से…
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