Vaishvikaran aur Hindi-Bangla Lekhikaon ka Katha Sahitya
वैश्‍वीकरण और हिन्दी-बंगला लेखिकाओं का कथा साहित्य (1990-अद्यतन)

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वैश्‍वीकरण और हिन्दी-बंगला लेखिकाओं का कथा साहित्य (1990-अद्यतन)

Vaishvikaran aur Hindi-Bangla Lekhikaon ka Katha Sahitya
वैश्‍वीकरण और हिन्दी-बंगला लेखिकाओं का कथा साहित्य (1990-अद्यतन)

450.00

Author(s) — Rajani RajakAnoop
लेखक  — रजनी रजक

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 140 Pages | 5.5 x 8.5 inches |

| Book is available in PAPER BACK & HARD BOUND |

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Description

पुस्तक के बारे में

जब तक शोषित हैं, तब तक उनके प्रतिरोध के स्वर उठते रहेंगे और सुने जायेंगे। अवधारणा, चिंतन और विमर्श बदलते जायेंगे पर समाज में अन्याय का विरोध होता रहेगा। साहित्य में विरोध के स्वरों की एकजुटता और दूरी को समझने में तुलनात्मक अध्ययन बड़ा कारगर सिद्ध होता है। रजनी रजक की यह पुस्तक उदारीकरण के दौर में हिन्दी और बंगला कथा साहित्य में लेखिकाओं द्वारा सम्बोधित विषय के वैविध्य को परिश्रमपूर्वक सामने लाती है। इस पुस्तक में विवेचित हिन्दी और बंगला की लेखिकाओं के कथा साहित्य को वास्तविक संसार में शिक्षा संबंधी, कानून, राजनैतिक भागीदारी और बाज़ार के आंकड़ों के बरक्स विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है। हिन्दी की कथा लेखिकाएं उच्च और उच्च मध्यवर्ग की विलासबहुलता से घिरी स्त्री के मनोसंताप की दुनिया से दूरी बरतकर बहुसंख्यक स्त्री के संघर्ष से जुड़ने में अधिक सफल रही हैं। यह पुस्तक हमें बताती है कि हिन्दी की तुलना में बंगला की लेखिकाऐं पति-पत्नी संबंध और तलाक आदि पर लिख रही हैं। वैश्वीकरण के अति तीव्र समय में हिन्दी कथा साहित्य की लेखिकाओं ने स्त्री की वह नई भाषा गढ़ी है जिससे वह समानता के प्रश्नों को आत्मविश्वास से पूछ सके। पिछले तीन दशकों में दोनों भाषाओं की लेखिकाओं के निरंतर समृद्ध होते कथा संसार का यह तुलनात्मक अध्ययन अपनी तटस्थता के कारण प्रशंसनीय है।

– प्रो. रूपा गुप्ता

 

 

Additional information

Weight 500 g
Dimensions 10 × 7 × 0.75 in
Binding Type

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