The Dark Theatre
द डार्क थियेटर – एक बहुरूपिया की कालकथा
₹215.00 – ₹325.00
Author(s) — Rajendra Lahariya
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Description
…पुस्तक के बारे में…
“इसे ही तो पॉलिटिक्स कहते हैं।… झूठ को सच बनाने की कला पॉलिटिक्स कही जाती है!… मेरे सिर पर गोबर को देखकर यह कौन जाँच करने बैठेगा कि वह गोबर भैंस का है या गाय का!… लोग तो सिर्फ मेरे कहे के आशय की तरफ़ ही ध्यान देंगे कि मैं कितना बड़ा गोभक्त हूँ, कितना बड़ा धार्मिक हूँ कि गाय के सिर पर गोबर कर देने को गाय का आशीर्वाद मान रहा हूँ!… मैं लोगों को बताऊँगा कि शास्त्रों के अनुसार गाय में तैंतीस करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं, तो इस प्रकार यह मेरे ऊपर तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद है!… मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मेरी यह बात सुनकर लोग गाय के साथ-साथ मेरे भी भक्त हो जायेंगे!… तो राजनीति में हर एक स्थिति का इस्तेमाल हो सकता है!… बहरहाल, बात यह है कि राजनीति में उठाया गया कोई भी कदम गलत या सही नहीं होता; बल्कि सफल या असफल होता है!… और राजनीति में बार-बार प्रयोग करते रहना होता है… प्रयोग! एक्सपेरीमेंट्स!…. उस आदमी ने जीवन-भर क्या किया था, जो आज राष्ट्र का बाप बना बैठा है! वह राष्ट्र का बाप कैसे बन गया? अपने प्रयोगों के द्वारा बन गया!… यदि वह कभी कोई प्रयोग ही नहीं करता, तो…?… लेकिन करता क्यों नहीं? वे प्रयोग ही तो उसकी राजनीति थे!… तो राजनीति में प्रयोग ज़रूरी होते हैं… साथ ही ज़रूरी होता है उन प्रयोगों का उपयोग भी!… मैंने जो किया है, वह एक प्रयोग ही है!” कहकर बद्री ने विश्वसनीय को बेधती निगाहों से देखा।
…इसी उपन्यास से…
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