Sanskriti Rajsatta aur Samaj
संस्कृति, राजसत्ता और समाज

250.00350.00

8 in stock

Editor(s) – Sudhash Sharma
संपादक — सुभाष शर्मा

CONTRIBUTORS – Dr. Khagendra Thakur, Prof. Hetukar Jha, Dr. Subhash Sharma, Prof. Ratneshwar Mishra, Ranindra, Arun Das, Anant Kumar Singh, Jawahar Pandey, Vinod Anupam

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 232 Pages | 5.5 x 8.5 Inches |

|available in PAPER BACK & HARD BOUND |

Description

डॉ. सुभाष शर्मा

जन्म : 20 अगस्त, 1959, सुल्तानपुर (उ. प्र.)
शिक्षा : बी.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से। एम.ए., एम.फिल (समाजशास्त्र), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से। एम.ए. (विकास प्रशासन एवं प्रबन्धन) मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से। पटना विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. (समाजशास्त्र)।
प्रकाशित कृतियाँ : ‘जिन्दगी का गद्य’, ‘अंगारे पर बैठा आदमी’, ‘दुश्चक्र’, ‘बेजुबान’, ‘भारत में बाल मजदूर’, ‘भारत में शिक्षा व्यवस्था’, ‘भारतीय महिलाओं की दशा’, ‘हिन्दी समाज : परम्परा एवं आधुनिकता’, ‘शिक्षा और समाज’, ‘विकास का समाजशास्त्र’, ‘भूख तथा अन्य कहानियाँ’, ‘खर्रा एवं अन्य कहानियाँ’, ‘कुँअर सिंह और 1857 की क्रान्ति’, ‘भारत में मानवाधिकार’, ‘संस्कृति और समाज’, ‘शिक्षा का समाजशास्त्र’, ‘हम भारत के लोग’, ‘डायलेक्टिक्स ऑव अग्रेरियन डेवलपमेन्ट’, ‘व्हाइ पीपल प्रोटेस्ट’, ‘सोशियोलॉजी ऑव लिटरेचर’, ‘डेवलपमेन्ट एंड इट्स डिस्कान्टेन्ट्स’, ‘ह्यूमन राइट्स’, ‘द स्पीचलेस एंड अदर स्टोरीज’, ‘मवेशीवाड़ा’ (जॉर्ज ऑर्वेल के उपन्यास ‘द एनिमल फार्म’ का अनुवाद), ‘कायान्तरण तथा अन्य कहानियाँ’ (फ्रांज काफ़्का की कहानियों का अनुवाद), ‘अँधेरा भी, उजाला भी’ (विश्व की चुनिन्दा कहानियों का अनुवाद)। प्रमुख पत्रिकाओं में कई कहानियाँ, कविताएँ एवं लेख प्रकाशित। इनकी विभिन्न कहानियों का अंग्रेजी, ओडिया, बांग्ला, मराठी आदि में अनुवाद।
पुरस्कार : राजभाषा विभाग, बिहार सरकार से अनुवाद के लिए पुरस्कार; बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना से कहानी के लिए साहित्य साधना पुरस्कार; ‘भारत में मानवाधिकार’ पुस्तक पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (नयी दिल्ली) से प्रथम पुरस्कार (2011)।
सम्प्रति : भारत सरकार एवं बिहार सरकार की सेवा में उच्च पदों पर कार्यानुभव। ई-मेल : sush84br@yahoo.com
फोन : 0612-2280145

पुस्तक के बारे में

मनुष्य जाति का इतिहास समाज, संस्कृति और सभ्यता का इतिहास भी है। समाज के आरोह -अवरोह की कहानी का अक्स सभ्यता और संस्कृति में देखा-परखा जा सकता है। समाज, सभ्यता और संस्कृति के विकास के $खास चरण में राजसत्ता का विकास भिन्न-भिन्न समाजों में अलहदा-अलहदा ढंग से हुआ है। पारस्परिकता से पनपे और विकसित हुए इनके जटिल रिश्ते पर देश-काल का असर भी रहा है। डॉ. सुभाष शर्मा द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में समाज, संस्कृति और राजसत्ता के विभिन्न आयामों, अन्तर्सम्बन्धों और परस्पर सम्वादों को विश्लेषित करनेवाले गम्भीर आलेख शामिल हैं। सभ्यता और संस्कृति के मध्य के बारी$क अन्तर से लेकर इसमें अन्तर्निहित वर्चस्व और प्रतिरोध के पहलू की विशद व्याख्या यह पुस्तक करती है। इस पुस्तक की विशेषता है कि इसमें शामिल नौ निबन्ध सैद्धान्तिक विमर्शों की पड़ताल करने के साथ इससे सम्बद्ध राजनीति और सौन्दर्य के त$करीबन सभी आयामों की विशद चर्चा अपने दायरे में समेटे हैं। उत्पादन-प्रक्रिया के साथ सत्ता एवं संस्कृति के अन्तर्सम्बन्धों पर भी विचार किया गया है। औपनिवेशिक ज्ञान मीमांसा ने भारतीय समझ को कमतर साबित करने के लिए अनेक मोर्चों पर सुनियोजित और सुचिन्तित तरी$केसे काम किया। औपनिवेशिक शासन ने अपने हित में भारतीय समाज-व्यवस्था को छिन्न- भिन्न करने की जमीन तैयार की। इससे औपनिवेशिक शासन-प्रणाली का भविष्य सुरक्षित हुआ। मौजूदा दौर में ‘जाति’ भारतीय समाज की सबसे बड़ी पहचान बन गयी है। सचाई यह है कि उन्नीसवीं सदी के उत्तराद्र्ध—जब जनगणना में इसे प्रमुखता से रेखांकित कर अस्मिता का सुदृढ़ आधार बनाया गया—से पूर्व जाति की भूमिका इस हद तक निर्णायक नहीं थी, जितना वर्तमान देश-काल में दिखती है। क्या यह कहने की जरूरत है कि अध्ययन, विश्लेषण और ज्ञान-मीमांसा सत्य की दिशा बदल देते हैं। भारतीय समाज में मुसहर और आदिवासी संज्ञा से सम्बोधित तबका सबसे हाशिये पर है। इस पुस्तक में इनकी संस्कृति के सौन्दर्य और सभ्य समाज से इनके अन्तद्र्वंद्व पर शामिल निबन्ध इस पुस्तक की चिन्ता और चेतना स्पष्ट करता है।

—डॉ. राजीव रंजन गिरि

…यहाँ चार तथ्य उल्लेखनीय हैं : पहला, संस्कृति एक नहीं, अनेक होती हैं अर्थात् संस्कृति एकरेखीय सभ्यता से भिन्न होती है। उच्च वर्ग की संस्कृति बनाम निम्न वर्ग की संस्कृति, साम्राज्यवादी संस्कृति बनाम उपनिवेश की संस्कृति, पितृसत्तात्मक संस्कृति बनाम मातृसत्तात्मक संस्कृति, केन्द्र की संस्कृति बनाम परिधि की संस्कृति, आधिपत्यकारी (श्वेत) संस्कृतिवाद बनाम लोकतांत्रिक बहुल संस्कृति आदि। दूसरा, भौतिक संस्कृति और अभौतिक (सूक्ष्म) संस्कृति में अन्तर होता है। भौतिक संस्कृति में प्रौद्योगिकी, भोजन, पोशाक, शिल्प आदि शामिल हैं जबकि अभौतिक संस्कृति में मुख्यत: भाषा, रीति-रिवाज़, परम्परा आदि शामिल हैं। तीसरा, सभी संस्कृतियों में सार्वभौमिक तत्त्वों के साथ-साथ विशिष्ट अस्मितामूलक तत्त्व भी होते हैं जो दो या अधिक संस्कृतियों के लोगों की अन्त:क्रिया के दौरान खास तौर पर दृष्टिगोचर होते हैं। चौथा, संस्कृति कभी भी पूर्णत: विशुद्ध नहीं होती, बल्कि सहज एवं स्वत:स्फूर्त ढंग से दूसरी संस्कृति से आदान-प्रदान करती है और इसमें परिवर्तन तथा निरन्तरता दोनों का समावेश होता है। विभिन्न विकल्पों में से एक का चयन करने में अन्य कारकों (आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, भौगोलिक) के अलावा संस्कृति का भी अच्छा-$खासा दखल होता है, किन्तु न तो सांस्कृतिक निर्धारणवाद का धु्रवान्त तर्क एवं तथ्य की कसौटी पर खरा उतरता है और न संस्कृति की उपेक्षा ही सही है। विभिन्न विद्वानों ने संस्कृति बनाम अराजकता (मैथ्यू अर्नोल्ड), संस्कृति बनाम ‘प्रकृति की अवस्थाÓ (स्टेट ऑव नेचर)–टामस हाब्स एवं जे.जे. रूसो, संस्कृति (सभ्यता) बनाम असभ्यता (हर्बर्ट स्पेंसर), उच्च भ्रू संस्कृति बनाम निम्न संस्कृति (एल.एच. मोर्गन) के बीच टकरावों का उल्लेख किया है। ये टकराव पश्चिमी यूरोप के अभिजनों और सामान्य नागरिकों के बीच होते रहे हैं, अथवा वैश्विक स्तर पर यूरोपीय औपनिवेशिक सत्ताओं तथा शोषित उपनिवेशों के बीच होते रहे हैं।

—पुस्तक की भूमिका से…

पुस्तक में शामिल लेखों की सूची

भूमिका
1. संस्कृति और राजसत्ता –डॉ. खगेन्द्र ठाकुर
2. कल की राजनीति, आज की संस्कृति –प्रो. हेतुकर झा
3. संस्कृति, राजसत्ता और समाज –डॉ. सुभाष शर्मा
4. मिथिला के सांस्कृतिक आयाम –प्रो. रत्नेश्वर मिश्र
5. झारखंडी संस्कृति : देशज सौन्दर्य का आलोक –रणेन्द्र
6. मुसहर-संस्कृति और सभ्य समाज –अरुण दास
7. मगध की संस्कृति और राज्य –अनन्त कुमार सिंह
8. भोजपुरी संस्कृति के आयाम –जवाहर पाण्डेय
9. सिनेमा और राज्य –विनोद अनुपम
लेखकों का परिचय

लेखकों का परिचय

1. डॉ. खगेन्द्र ठाकुर–प्रसिद्ध कवि-आलोचक। करीब डेढ़ दजऱ्न महत्त्वपूर्ण साहित्यिक-वैचारिक पुस्तकों के लेखक। प्रगतिशील लेखक संघ के विभिन्न पदों पर कार्य किया और भागलपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी के प्रोफेसर के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। वह मज़दूरों के आन्दोलन से जुड़े रहे हैं। उनका सद्य: प्रकाशित उपन्यास ‘सेन्ट्रल जेल’ चर्चित। विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित। पता : क्षितिज, पथ सं 24, राजीव नगर, पटना (बिहार) मोबाइल: 9431102737
2. प्रो. हेतुकर झा–प्रसिद्ध समाजशास्त्री। पटना विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त। कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकों एवं शोधपत्रों का प्रकाशन। कुछ वर्ष पूर्व निधन। पता : ब्लॉक ओ-17, आशियाना नगर (फेज-1), पटना (बिहार)।
3. डॉ. सुभाष शर्मा–चर्चित कथाकार-आलोचक-विचारक। दो दजऱ्न साहित्य, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा, विकास से सम्बन्धित पुस्तकों के लेखक। उनकी पुस्तक ‘संस्कृति और समाज’ विशेष रूप से चर्चित। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (नई दिल्ली) द्वारा 2011 में ‘भारत में मानवाधिकार’ पुस्तक के लिए प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत। भारत सरकार एवं बिहार सरकार के विभिन्न उच्च पदों पर कार्य करने का अनुभव। पता : ए 3/25, ऑफिसर्स फ्लैट, बेली रोड, शास्त्रीनगर, पटना (800023) फोन-0612-2280145
4. प्रो. रत्नेश्वर मिश्र–प्रसिद्ध इतिहासकार। इतिहास की कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के लेखक। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद से सेवा निवृत्त। पता : 403, कर्पूरी प्रतिभा पैलेस, गाँधी पथ, नेहरू नगर, पटना (800013) मोबाइल : 9334920585
5. रणेन्द्र–चर्चित उपन्यासकार-कहानीकार। ‘झारखंड इन्साइक्लोपीडियाÓ के लेखक। ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ नामक उपन्यास चर्चित। सम्प्रति : झारखंड प्रशासनिक सेवा में कार्यरत। पता: नारायण इनक्लेव ब्लॉक ए, 2 सी घरौंदा, हरिहर सिंह रोड, मोराबादी, राँची (झारखंड) (834008) मोबाइल : 9431114935
6. अरुण दास– विभिन्न आन्दोलनों से जुड़े जुझारू एवं कर्मठ सामाजिक कार्यकत्र्ता। बाल मज़दूरों और महादलित समुदाय की समस्याओं पर बिहार में सरज़मीन पर कार्य। कई पुस्तकों एवं लेखों का प्रकाशन। पता : अनुज सदन, शिव नगर, हरनीचक, अनीसाबाद, पटना (800002)
7. अनन्त कुमार सिंह–चर्चित कथाकार तथा ‘जनपथ’ नामक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक। विभिन्न जनान्दोलनों में सक्रिय। सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक आरा (भोजपुर) के वरीय प्रबन्धक पद से सेवानिवृत्त। पता : द्वारा जितेन्द्र कुमार मदन जी का हाता, आरा (भोजपुर) (802301) मोबाइल : 9431847568
8. जवाहर पाण्डेय–युवा आलोचक। आरा स्थित एक डिग्री कॉलेज में प्राध्यापक। विभिन्न पुस्तकों एवं लेखों का प्रकाशन। पता : 303, चंचल अपार्टमेंट, नेहरू नगर, पाटलिपुत्र कॉलोनी, पटना 800013 (बिहार) मोबाइल : 9431887703
9. विनोद अनुपम–प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक, पुस्तकें एवं समीक्षात्मक लेख प्रकाशित। पता : बी 53, सचिवालय कॉलोनी, कंकड़बाग, पटना (800020) मोबाइल : 9334406442

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संस्कृति, राजसत्ता और समाज

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