Samay aur Vichar
समय और विचार (कविता संग्रह)

Samay aur Vichar
समय और विचार (कविता संग्रह)

280.00

Available on backorder

Author(s) — Narendra Nirmal
लेखक — नरेन्द्र निर्मल

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 112 Pages | Hard BOUND | 2020 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 350 grams | ISBN : 978-93-86835-95-6 |

Available on backorder

Description

पुस्तक के बारे में

सृष्टि के उत्थान और पतन ने कई वास्तविकताओं से पर्दा उठाया है। सोवियत रूस की श्रेष्ठ मानी जाने वाली साम्यवादी व्यवस्था लाखों लोगों के रक्त से सनी थी और अन्तत: असत्य का बोझ न सहने के कारण चरमरा गई। यही हाल कुछ अन्य राष्ट्रों का भी हुआ। प्रश्न यह नहीं है कि कौन-सी व्यवस्था श्रेष्ठ है। प्रश्न यह है कि किसी भी व्यवस्था में व्यक्ति भ्रष्ट और आततायी क्यों बन जाता है। वह सत्ता के सुख को शाश्वत और सिर्फ अपने लिए क्यों समझने लगता है? वह प्रकृति के अटल नियम ‘परिवर्तन’ को क्यों भूल जाता है। केवल परिवर्तन ही तो स्थायी है। वास्तविकता तो यह है कि समय कभी मनुष्य के पक्ष में नहीं होता। अपने अनथक प्रयासों से अपने पक्ष में लाना होता है। और, समय केवल उनके पक्ष में खड़ा होता है जो अपने लिए नहीं, समष्टि के लिए जीते हैं। समष्टि के लिए जीने का अर्थ है, सह अस्तित्व के साथ जीना। जाति, लिंग, देश, भाषा, धर्म या अन्य किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं करना। समानता ही सार्वभौमिक धर्म होना चाहिए। आजकल शासकों के पाए भेदभाव पर ही टिके हैं। छद्म बुद्धिजीवियों
का समर्थन, असमानता पर आधारित नीतियाँ, भ्रष्ट तंत्र और महत्त्वाकांक्षी राजनेताओं की पिपासा राष्ट्रों को खोखला कर रही है। उपरोक्त सारी वास्तविकताओं के बीच ही मनुष्य को जीना है। हम रचनाकार भी इसी के हिस्से हैं। यही हमारी उर्जा का स्रोत है। समाज हमें ‘कर्म’ देता है और ‘कविता’ देती है संवेदना। कर्म और संवेदना परस्पर पूरक है। हम जब कुछ करते हैं तो जुड़ते हैं– यही तो ‘योग’ है। जब कुछ नहीं करते, तो टूटते हैं, बिखरते हैं, खो जाते हैं संवेदना टूटने से बचाती है। संवेदना संजीवनी है, पुन: जीवन देती है। हमें जीवन में बार-बार संजीवनी की जरूरत पड़ती है। ‘अहसास’ चिरायु नहीं होते। पुन: पुन: सींचना पड़ता है उन्हें।

…इसी पुस्तक से…

This website uses cookies. Ok