Rajendra Lahariya kee Chuninda-Charchit Kahaniyan
राजेन्द्र लहरिया की चुनिन्दा-चर्चित कहानियाँ
₹0.00 – ₹215.00
10 in stock
Author(s) — Rajendera Lehariya
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Description
पुस्तक के बारे में
उन्हें तो उस वक़्त इस बात का भी इल्म नहीं था कि मुल्क में भले ही ‘लोकतंत्र’ नामक व्यवस्था लागू है; परन्तु जब कभी भी मुल्क की किसी सड़क से ‘लोकतंत्र’ का कोई ‘राजपुरुष’ (गद्दी पर बैठने के बाद, पुरुष तो ‘राजपुरुष’ होता ही है, स्त्री भी ‘राजपुरुष’ ही होती है।) गुज़रता है, तब ‘लोक’ उस सड़क पर होने-गुज़रने का हक़ खो देता है; और उस सड़क का चप्पा-चप्पा उस पर से गुज़र रहे ‘राजपुरुष’ की जागीर हो जाता है!…
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सहसा सुभाषचन्द्र की त्यौरी फटी रह गयी…उन्होंने देखा, बाबा का शरीर और चेहरा बदला हुआ है; उनकी खाल पके फोड़े की तरह पिलपिली तथा बैल के सींग की तरह रूखी और छिलकेदार है; वे जुगाली-सी करते हुए मुँह चला रहे हैं और उनके होंठों के छोरों से लाल-लाल खून की फसूकर सहित लकीरें बह रही हैं…
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कभी-कभी भय की कोई शक्ल नहीं होती। वह बिल्कुल बेचेहरा और निराकार होता है।…साँप, शेर या झगड़ों-दंगों-फसादों के भय साफ़ दिखायी देते हैं। पर सबसे ख़तरनाक और भयानक वह होता है, जो दिखायी नहीं देता; बस महसूस होता है!
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उसके बाद का समय मेरे तईं टुकड़े-टुकड़े होकर मौजूद रहा; और उस समय के वे नुकीले टुकड़े मेरे ज़ेहन में इतने गहरे खुभे हुए हैं कि तमाम कोशिशोमशक्कत के बाद भी बाहर निकलने का नाम नहीं लेते!…उन्हीं में से एक टुकड़ा वह है… एक आदमी… ‘कट-फट गया है’… ‘पड़ा है’… ‘मजदूर लगता है’… ‘कराह रहा है’… ‘मरा नहीं है’… ‘साँस चल रही है अभी’… ‘ख़ूनखच्चर हो गया है’… फिर भी एक सरकारी कार दौड़ी जा रही है नेशनल हाईवे पर – एक धार्मिक यात्रा के लिए!…
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उसके बाद एक दिन राजा को कुछ अजीब तरह का अहसास होने लगा था…और कुछ ही दिनों बाद एक बड़ी-सी नाक तैयार थी – राजा की पीठ पर!…
– इसी संचयन से, कुछ कहानियों के अंश
…इसी पुस्तक से…
Additional information
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Binding Type |
राजेन्द्र लहरिया की चुनिन्दा-चर्चित कहानियाँ”
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