Osho : Hashiye par Mukhprastha
ओशो : हाशिए पे मुखपृष्ठ
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Author(s) — Saroj Kumar Verma
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 143 Pages | 2021 |
Description
सरोज कुमार वर्मा
जन्म : 20 अगस्त, 1961; शिवहर (बिहार), जिला का बसहिया (पिपराही) गाँव। शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी.। प्रकाशित पुस्तकें : l दर्शन के सरोकार l गाँधी : भविष्य का महानायक। प्रकाश्य कृतियाँ : दर्शन l ओशो की दर्शनिक अवधारणाएँ l भारतीय दर्शन : समकालीन संदर्भ r साहित्य l मगर साक्षी क्या करे (कविता-संग्रह) l है मयस्सर अब कहाँ (गजल-संग्रह)। प्रकाशन : l परामर्श, दार्शनिक त्रैमासिक, गाँधी-मार्ग, अनासक्ति दर्शन, संदर्शन, समाज धर्म एवं दर्शन, चिंतन-सृजन, समकालीन, भारतीय साहित्य, नवनीत, आजकल, योजना, हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स तथा राजस्थान पत्रिका आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं भारतीय दर्शन के 50 वर्ष, दर्शन के आयाम तथा सर्वोदय का समकालीन सन्दर्भ आदि संकलित-सम्पादित पुस्तकों में शोध-पत्र एवं निबन्ध प्रकाशित। l वागर्थ, अक्षरा, आवर्त, अद्यतन, कतार, कथाबिम्ब, मध्यान्तर, समान्तर, समकालीन परिभाषा, देशकाल सम्पदा, अक्षर पर्व, नवनीत, हिन्दुस्तान तथा राजस्थान पत्रिका आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ एवं गजलें प्रकाशित। प्रसारण : l आकाशवाणी, पटना एवं दूरदर्शन, मुजफ्फरपुर से। सम्पादन : l Women¹’s Empowerment in India : Philosophical Perspectives l योग : स्वरूप एवं सन्दर्भ l दार्शनिक चिन्तन (शोध पत्रिका)। सहभागिता : दार्शनिक अधिवेशनों-संगोष्ठियों एवं साहित्यिक गोष्ठियों-सम्मेलनों में निरन्तर पत्र-प्रस्तुति एवं काव्य-पाठ; पुरस्कार : l अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा ‘दर्शन के सरोकार’ पुस्तक के लिए ‘सोहन राज तातेड़ दर्शन पुरस्कार’ प्राप्त। l अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा ‘हिन्द स्वराज के मूल में है गाँधी का सभ्यता दर्शन’ आलेख के लिए ‘श्रीमती कमला देवी जैन-स्मृति पुरस्कार’ प्राप्त। l ‘हिन्दुस्तान काव्य-प्रतियोगिता’ में ‘जब बाबुल हॉस्टल चला जाता है’ तथा ‘कैमूर कविता प्रतियोगिता’ में ‘जब तक बचे रहेंगे पिता’ कविताएँ पुरस्कृत। सम्प्रति : आचार्य, दर्शन विभाग, बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर-842001 (बिहार) निवास : फ्लैट नं. 307, आशा विहार फेज-3, माड़ीपुर, मुजफ्फरपुर-842001 (बिहार) मो. 09835856030, e-mail : drskverma61@gmail.com
ओशो स्वातंत्र्योत्तर भारतीय दर्शन के आकाश में जगमगाता हुआ ऐसा नक्षत्र हैं, जिसके प्रकाश में दर्शन न केवल बाहर व्यापक विस्तार लेता है, बल्कि अंदर तलीय गहराई भी स्पर्श करता है। वह इस मायने में कि जहाँ ओशो अर्थ, काम, नीति, शिक्षा, समाज, विज्ञान और राजनीति जैसे जीवन के बाह्य विविध प्रसंगों में अपने विचार प्रस्तुत करते हैं, वहीं अपने भीतर जाकर धर्म धारण करने, आत्मा का बोध प्राप्त करने तथा स्वयं के साक्षात्कार की ओर उन्मुख होने की अनिवार्यता भी प्रतिपादित करते हैं। इस प्रकार ओशो का दर्शन उस संपूर्ण-समन्वित जीवन का प्रस्ताव है, जिसमें अंदर और बाहर दोनों दिशाओं की समृद्धि होती है, दोनों आयामों का समन्वय होता है। ओशो अपने इस प्रस्ताव को वैचारिक स्थापना की उर्वर जमीन देकर भाषा-सरणी के जल से सींचते हैं, फिर उसमें वक्तृत्व-कला का रसायन डालकर तर्क की भित्ति पर तर्कातीत बोध की ऐसी मादक सुगंध बिखेर देते हैं कि उन्हें हर पढ़ने-सुनने वाला मदहोशी में डूब जाता है। यह मदहोशी होश का ऐसा स्वाद दे जाती है, जो चेतना को तृप्त कर अनंत की यात्रा पर निकलने के लिए तैयार कर देता है। इसीलिए सुश्री उर्मिल सत्य भूषण यह लिखती हैं कि–“एक युगपुरुष की भाँति ओशो रजनीश जीवन और जगत के स्थूल से स्थूल और सूक्ष्म में सूक्ष्म पक्षों को अपनी आत्मा का स्पर्श देकर, गहरे पैठकर व्याख्या करते हैं। दर्शन जैसे श्रेष्ठ विषयों में भी प्राण फूँककर उन्हें नई अर्थवत्ता के आलोक में प्रस्तुत करते हैं। राजनीति, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, ध्यान, योग, दर्शन, काम, अध्यात्म– सभी विषयों को अपनी अमृत वाणी से सींच-सींचकर, रसप्लावित कर हृदय के तार-तार तथा मस्तिष्क की शिराओं तक पहुँचाते हैं। उनकी साधना और साहित्य को अलग नहीं किया जा सकता।
उनके प्रवचनों में बहती हुई कल-कल निनाद करती काव्य-सरणी, उनके दृष्टांतों में गुँथी कथा-यात्राएँ, उनकी वाणी में से झरते हास्य-व्यंग, उन्हें एक उच्च कोटि का साहित्यकार घोषित करते हैं। वे साधक, कवि, कलाकार, मनीषी सब कुछ हैं। पृथ्वी और जीवन से जुड़ी उनकी मधुर, सरल, प्रवाहमान वाणी में अथक संप्रेषणीयता है। वे साधना, दर्शन और साहित्य के अनूठे संगम में विलक्षण प्रभाव पैदा किये हैं।”1 इस प्रभाव के कारण ही खुशवंत सिंह भी यह कहते हैं कि– “भारत ने अब तक जितने विचारक पैदा किये हैं, वे उनमें से सबसे मौलिक, सबसे उर्वर, सबसे स्पष्ट और सर्वाधिक सृजनशील विचारक थे।”2
परंतु कई लोग उन्हें विचारक नहीं मानते। उनकी दलील होती है कि ओशो ने नया कुछ नहीं कहा है, इसलिए उन्हें मौलिक दार्शनिक की संज्ञा नहीं दी जा सकती, उस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
इसी पुस्तक से
पुस्तक के बारे में
जन्म : 20 अगस्त, 1961; शिवहर (बिहार), जिला का बसहिया (पिपराही) गाँ
अनुक्रम
स्थापना खंड
ओशो : व्यापक सरोकार के दार्शनिक
अद्वैतवाद की परंपरा में ओशो
हिन्दी भाषा में ओशो का दार्शनिक चिंतन
अवधारणा खंड
जोरबा दि बुद्धा : ओशो की मुकम्मल मनुष्य की परिकल्पना
ओशो दर्शन में पुरुषार्थ विवेचन
ओशो का शिक्षा-दर्शन : संपूर्ण शिक्षा-पद्धति का प्रस्ताव
ओशो दर्शन में ध्यान की अवधारणा
तुलना खंड
फ्रायड और ओशो के चिंतन में काम : एक तुलनात्मक अध्ययन
श्री अरविन्द और ओशो का नया मनुष्य : एक तुलनात्मक अध्ययन
कृष्णमूर्ति और ओशो का धर्म-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
8 reviews for Osho : Hashiye par Mukhprastha
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