Author(s) — D.N. Prasad
लेखक — डी.एन. प्रसाद
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 188 Pages | 2022 | 6 x 9 inches |
| Will also be available in HARD BOUND |
₹240.00
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गाँधी से पहले भारतीय दर्शन की दिलचस्पी मुख्यत: पारमार्थिक जगत तक ही सीमित थी। गाँधी ने भारतीय दर्शन के उन प्रत्ययों को, जो सामाजिक जीवन में अपनाए जा सकते थे, किन्तु जो सदियों से निष्क्रिय पड़े थे; व्यवहार में ला कर एक नया जीवन दिया। और इस प्रक्रिया में अनेकों बासी पड़ गए शब्दों को नये आधार प्रदान किये। यही नहीं उन्होंने अपने चिंतन को स्पष्ट करने के लिए नए-नए शब्द भी गढ़े और उनके इन शब्दों की शब्दिता ही दर्शन के पर्याय बन गए।
व्यवहारिक दर्शन की जितनी प्रयोगशीलता गाँधी के जीवन-दर्शन में मिलती है वैसा कार्यान्वयन अन्यत्र सुलभ नहीं है। यह उनके अनुभूत तथ्य का सत्याभास है। अनुप्रयुक्त दर्शन (Applied Philosophy) का अनुभूत सत्य गाँधी की दार्शनिक अनुभूति है, जिसका व्यवहार पक्ष सिद्धान्त-संगत प्रमाण से प्रमाणित है।
विभिन्न चिन्तकों, धर्मों, विचारकों का समुच्चय गाँधी के लिए रसप्रेषण का काम करते हैं, जिस धाराप्रवाह में गाँधी दुनियां के लिए नज़ीर बनते हैं। उनका यह अभिनव जीवन अनंत के लिए अमिताभित होता है।
प्रार्थना नम्रता की पुकार है।
आप अपना दिवसारम्भ प्रार्थना के साथ कीजिए और उसमें अपना हृदय इतना उड़ेल दीजिए कि वह शाम तक आपके साथ रहे। दिन का अंत प्रार्थना के साथ कीजिए जिससे आपको स्वप्नों और दुःस्वप्नों से मुक्त शांतिपूर्ण रात्रि नसीब हो। प्रार्थना के स्वरूप की चिंता मत कीजिए। स्वरूप कुछ भी हो, वह ऐसा होना चाहिए, जिससे हमारी भगवान के साथ लौ जल जाए। इतनी ही बात है कि प्रार्थना का रूप चाहे जो हो, जिस समय आपके मुँह से प्रार्थना के शब्द निकले, उस समय मन इधर–उधर न भटके। प्रार्थना एक आवश्यक आध्यात्मिक अनुशासन है।
…इसी पुस्तक से…
अहिंसा धार्मिक कोटर में बन्द थी। गाँधी ने उसे सामाजिक बनाया। गाँधी को आध्यात्मिक अनुभूति का अहिंसात्मक चित्त एक जैन संत विचारक श्री राजचन्द्रभाई से प्राप्त होता है। गाँधी को गह्वर मंथन के बाद प्राप्त होता है अहिंसा का सामाजिक दर्शन, जो गाँधी का अभिष्ट भी था। गाँधी आध्यात्मिक चितेरा होते हुए भी सामाजिक समन्वय के सुन्दर निवेशक थे। इसी परिवेश में अहिंसा अपने सामाजिक दर्शन को प्राप्त करती है।
अवज्ञा में सविनय समाहित कर गाँधी ने अवज्ञा का दर्शन ही परिशोधित कर दिया और यह उनके जीवन का एक परिमार्जित व्यवहार का दर्शन बन गया, जिसकी दर्शनानुभूति ने उनके अंतस् को ऐसे आलोकित किया कि उनके द्वारा किया गया कृत–कार्य ‘महात्मय’ बन गया और वह ‘महात्मा’ के आलोक से आलोकित होकर ‘महात्मा गाँधी’ बन गये।
सत्य की आस्था ही सत्याग्रह के लिए औषधि बनी, यह गाँधी की सत्यानुभूति का प्रबल प्रतिफल है जिसने दुनिया को संघर्ष-समाधान का आग्रहभरा दर्शन दिया। सत्य गाँधी की कोर-फिलॉसफी है। सत्य रूपी बिन्दु-वृत्त की परिक्रमा में मनुष्य, जगत् और ईश्वर की मीमांसा गाँधी दर्शन के आधार तत्त्व के पार्थिव दर्शन का बोध कराते हैं जो गाँधी दर्शन का अभिष्ट है। ‘सत्य’ वह केन्द्र बिन्दु है जिसके विकिरण से अहिंसा, धर्म और ईश्वर आलोकित है। प्रार्थना ने तो उनके जीवन-दैनंदिनी की स्रोत वाहिनी का स्वरूप ग्रहण कर लिया था। यह आत्मशुद्धि और आत्मानुशासन की चेतना जगाता है। अस्तु, आत्मानुशासन और प्रार्थना उनके जीवन की चेतन-अवस्था के मूल में प्रवाहित होते रहे और यही रस-प्रवाह उन्हें चैतन्य बनाये रखा जिससे जीवन की किसी भी परिस्थिति में वे रसहीन नहीं हुए और सफलता सरस होती गयी।
…इसी पुस्तक से…
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