Kuhuki-Kuhuki maan Roiy (A Novel based on the tribal culture)
कुहुकि-कुहुकि मन रोय (आदिवासी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य पर उपन्यास)

/, Fiction / कपोल -कल्पित, Hard Bound / सजिल्द, Novel / उपन्यास, Paperback / पेपरबैक, Tribal Literature / आदिवासी विमर्श, Village Milieu / ग्रामीण परिवेश-परिप्रेक्ष्य, Women Discourse / स्त्री विमर्श/Kuhuki-Kuhuki maan Roiy (A Novel based on the tribal culture)
कुहुकि-कुहुकि मन रोय (आदिवासी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य पर उपन्यास)

Kuhuki-Kuhuki maan Roiy (A Novel based on the tribal culture)
कुहुकि-कुहुकि मन रोय (आदिवासी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य पर उपन्यास)

185.00290.00

Author(s) — Vishwasi Ekka
लेखक  — विश्‍वासी एक्‍का

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 96 Pages | 5.5 x 8.5 inches |

| Book is available in PAPER BACK & HARD BOUND |

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Description

पुस्तक के बारे में

जो व्यक्ति एक बार जंगल गया तो समझिए वो बार-बार उसकी ओर खिंचा चला जायेगा, वह जंगल में भटकता फिरेगा, जंगल के भीतर दूर तक चलता चला जायेगा जैसे ‘पुटू’ बीनती स्त्री या जड़ी-बूटी की तलाश करता कोई वैद्य। यह भटकना जगप्रसिद्ध भटकना नहीं वरन् एक सुखद यात्रा होती है। इस भटकाव में विविध पेड़-पौधे, नानाविध पक्षी, नानाविध स्वर संयोजन श्रम का परिहार करते चलते हैं।
पिता वन-विभाग की नौकरी में थे तो मेरा लगाव जंगल से होना ही था, क्यों न हो, मैंने तो यही जाना, यही समझा कि जंगल है तो जीवन है, साँसें हैं। जंगल तो उन्हें भी भा रहा है, जिन्हें जंगल से नहीं उसके नीचे दबे कोयला से प्रेम है, यह उनका जंगल से किया गया विश्‍वासघात ही तो है जो खनन क्षेत्र की मृतप्राय भूमि पर पौधे तक नहीं रोप पा रहे हैं, जबकि उन्हें पता है कि वे जंगल नहीं उगा सकते कुछ पौधे ही लगा सकते हैं। और बेहयाई यह कि सौ साल बाद जब कोई जंगल अपने दम पर पलेगा, बढ़ेगा हरियायेगा जंगल के हत्यारों की नयी पीढ़ी उस जंगल को काटने की जुगत में लग जायेगी। मुझ जैसे जंगल-प्रेमी को तो ऐसा विकास कभी नहीं भायेगा।

… इसी पुस्तक से…

आदिवासी उत्सवधर्मी होते हैं, उत्सव उनके जीवन में रंग भरते हैं लेकिन दुश्मन तो जैसे इसकी ताक में होते हैं गलत फायदा उठाने के लिए और पुरुषसत्ता भला स्त्री से कैसे हार मान ले। फिर एक उत्सव और फिर एक हमला यह हमला पुरुष अहंकार से भरा था, अपनी हेठी में इस बार आक्रमणकारी सेना जीत गयी। ओह! यह स्त्री-सेना की हार नहीं थी वरन् पुरुष अहंकार की सदैव होने वाली जीत थी। सेना की स्त्रियों ने तरकश से अपने-अपने तीर निकाले और एक-दूसरे के माथे पर तीर के नोकों से तीन खड़ी पाई के रूप में निशान बना लिये, दो झंडे और बीच में एक दंड, ये उनकी दो जीत और एक जबरदस्ती थोपी गयी हार की पहचान थी। जब वे किले में पहुँचीं तो माथे से रुधिर रेख आँखों, गालों से होते हुए उनके हृदयस्थल को भिगो रही थीं। पुरुषों ने अपनी अधखुली आँखों से उन्हें देखा और अनुमान लगाया कि किले की स्त्रियाँ परास्त होकर लौट रही हैं, माथे से बहने वाली रक्तधारा उन्होंने देखी लेकिन उसके पीछे तीर से गुदे विजय चिह्न वे नहीं देख सके।
जंगल को साफ कर बनाये गये खेतों में कुरथी और अरहर की अच्छी फसल होती है। कभी-कभी घर में पुरुषों की अनुपस्थिति में स्त्रियों को खेतों की रखवाली के लिए जाना पड़ता था, बन्दर स्त्रियों को उनकी वेशभूषा से पहचान जाते और डराने लगते, तब स्त्रियों को एक युक्ति सूझी उन्होंने साड़ी को पुरुषों के अन्दाज में धोती की तरह बाँध सिर पर पगड़ी बाँधने लगीं इस तरह वे बन्दरों को चकमा देकर भागती। एक बार तो बन्दरिया ने खटोले पर सोते बच्चे को गोद में उठा लिया और पेड़ पर चढ़ गयी, बच्चे की माँ की चीख-पुकार सुनकर गाँव के लोग पेड़ के पास इकट्ठे हो गये। एक बुजुर्ग ने युक्ति सुुझाई कि बन्दरों को जंगल में भी पर्याप्त खाना नहीं मिल पाता यदि हम उन्हें कुछ खाने की चीजें दिखाये तो वह बच्चे को वापस दे सकता है। इसी बीच किसी ने कहा ऐसे नहीं पहले बन्दरिया नीचे आ जाये नहीं तो वह खाने की चीज देखकर बच्चे को ऊपर से ही न छोड़ दे। लोग एक किनारे ओट में चले गये और बन्दरिया धीरे-धीरे नीचे आने लगी…

… इसी पुस्तक से…

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