Editor(s) — Ghanshyam Sharma
संपादक – घनश्याम शर्मा
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 192 Pages | Hard BOUND | 2020 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 500 grams | ISBN : 978-93-89341-22-5 |
पुस्तक के बारे में
… इसी पुस्तक से …
भारत में हिन्दी, बंगला, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ आदि सभी भारतीय भाषाएँ मातृभाषाएँ ही हैं। हिन्दी के सन्दर्भ में यह स्पष्ट करना असमीचीन न होगा कि मातृभाषा के रूप में हिन्दी भाषा का विकास मूल रूप से बोली-भाषी समूहों से हुआ है। खड़ीबोली, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मारवाड़ी, छतीसगढ़ी आदि बोलियों के प्रयोक्ता अपने बोली-क्षेत्र के बाहर के बृहत्तर समाज से जुड़ने तथा अपनी सामाजिक अस्मिता को स्थापित करने के लिए हिन्दी को मातृभाषा के रूप में स्वीकार करते हैं और सीखते हैं हालाँकि अगर ध्यान से देखा जाए तो हिन्दी की बोलियाँ ही वास्तव में मातृभाषा हैं। यह स्थिति हर भाषा की बोलियों पर लागू होती है। इसलिए भारत बहुभाषी देश है और इसकी सभी भाषाओं और उनकी बोलियों को मातृभाषा की संज्ञा दी जा सकती है।
प्रोफ़सर कृष्णकुमार गोस्वामी, केंद्रीय हिंदी संस्थान, दिल्ली
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दक्खिनी दक्षिण भारत में सदियों तक आम जनता की भाषा (Lingua Franca) बनी रही, और आज भी बनी हुई है। दक्षिण में इसका प्रयोग क्षेत्र (Domain) मुख्य रूप से निजाम शासन् (जिसमें मुख्य रूप से तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ भाग शामिल है) था। सरलीकरण प्रक्रिया मनोवैज्ञानिक है जो मानव के हर प्रकार के व्यवहार में देखी जाती है। दक्खिनी भाषा सरलीकरण प्रक्रिया की उपज है। जब जो भिन्न भाषा-भाषी समुदाय सम्पर्क में आते हैं तब उनके द्विभाषिक सम्पर्क के परिणाम स्वरूप एक तीसरी भाषा जन्म लेती है। इस में दोनों भाषिक समुदायों की विशेषताएँ मिली रहती हैं। दक्खिनी में हिन्दी भाषी समुदाय और दक्षिणी भाषियों की भाषिक विशेषताएँ मिली हुई हैं। दक्खिनी भाषा पर उपलब्ध भाषागत अध्ययन से सम्बन्धित सामग्री के अवलोकन करने से लगता है कि इसके व्याकरण के अधिकांश तत्व द्रविड़ भाषाओं से मेल खाते हैं, भले ही इसकी शब्दावली आदि आर्य भाषा की हो। आपसी गहन सम्पर्क के कारण भाषाएँ एक दूसरे में व्याप्त (Interpenerate) भी हो जाती हैं। इसे भाषाविज्ञान की शब्दावली में विलयन (Fusion) कहा जाता है।
प्रो. शकुंतलम्मा वाई, पूर्व प्रोफ़ेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, उ.प्र.
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अँग्रेज़ी साम्राज्यवाद के दौर में भारत से लाखों लोगों को श्रमिक के रूप में अँग्रेज़ी उपनिवेशों में ले जाया गया जहाँ श्रमिक जीविकोपार्जन की दृष्टि से तो कुछ असहाय लाचारी की स्थिति में वहीं बस गए। ‘मारिशस’, ‘फीजी’, ‘त्रिनिदाद’, ‘सूरीनाम’, ‘ब्रिटिश गुयाना’, ‘दक्षिण’ ‘अफ्रीका’ आदि इसके उदाहरण हैं, जहाँ भारतवंशी भारी संख्या में बसते हैं। इन देशों में बसने वाले लोग अधिकांशतः पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार प्रान्त के लोग थे, जिनकी विचार-विनिमय की भाषा भोजपुरी थी। परिणाम स्वरूप वहाँ हिन्दी पत्रकारिता को अवसर मिला। “विदेशों में प्रकाशित होने वाला सबसे पहला हिन्दी पत्र था ‘हिन्दोस्थान’। यह पूर्वी उतर प्रदेश के कालांकांकर राज्य के राजा श्री रामपाल सिंह के प्रयत्नों से 1883 से 1885 के बीच एक त्रैमासिक पत्र के रूप में लन्दन से प्रकाशित हुआ था। आरम्भ में यह पत्र हिन्दी, उर्दू और अँग्रेजी त्रिभाषाई आधार पर निकाला गया था। 1885 से इसका प्रकाशन साप्ताहिक पत्र के रूप में होने लगा और 1887 से यह दैनिक रूप में परिणत हो गया।”
— डॉ. कृष्ण कुमार झा, अध्यक्ष, भाषा संसाधन केंद्र, महात्मा गाँधी संस्थान, मोका, मारीशस
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पुराने मानदण्ड जहाँ बोलचाल की भाषा और लेखन की भाषा यानि व्यवहार की भाषा और सिद्धांत की भाषा एक दूसरे से अलग थे। अब व्यवहार की भाषा ने सिद्धांत की भाषा को पीछे छोड़ तकनीक पर अपनी पकड़ बनाई है। अब व्यवहार की यह भाषा तीखी, तेवरपूर्ण और तीव्रता से पापुलर होती जा रही है।
— डॉ. ज्योति शर्मा, मानविकी और समाजविज्ञान संकाय, ज़ागरेब विश्वविद्यालय, क्रोएस्या
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भारत राष्ट्र में जातियों की सम्पर्क-भाषा क्या हो, एक ही सम्पर्क भाषा हो या अनेक भाषाएँ हों– ये प्रश्न भारत के इतिहास में एक बड़ी समस्या बने हुए हैं। हिन्दी भाषा लगभग एक सदी से भारत के प्रमुख वाद-विवादों के केन्द्र में है। अपनी विकास-यात्रा में इस भाषा ने कई रूप लिए हैं। ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के अनुसार हिन्दी भाषा को उसके केवल एक ही रूप से समझना ठीक नहीं माना गया है। हिन्दी भाषा का मूल वैविध्यपूर्ण है। उसकी एक विस्तृत परिभाषा दी जा सकती है। उसके अध्ययन में अवधी, ब्रजभाषा, दक्खिनी तथा अनेक भारतीय बोलियों तथा आधार भाषाओं के अध्ययन को भी शामिल किया जा सकता है।
— निकोला बुआँ प्रांसीपातो, इनाल्को, पेरिस, फ्रांस
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भारत की भाषा-समस्या पर भारतीय जनता का सामाजिक और सांस्कृतिक भविष्य निर्भर करता है। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने बहुजातीय व बहुभाषीय राष्ट्र की विशेषताएँ पहचानें और हिन्दी के साथ-साथ दूसरी स्थानीय भाषाओं को भी उतना ही महत्त्व दें।
– डॉ. लखिमा देओरी, अरुणाचल प्रदेश
अनुक्रम
- आमुख – घनश्याम शर्मा
- शिक्षा के माध्यम की भाषा– मातृभाषा –कृष्ण कुमार गोस्वामी
- हिन्दीतर प्रदेशों में हिन्दी-शिक्षण की चुनौतियाँ और समाधान –अनुशब्द
- पूर्वोत्तर राज्यों में हिन्दी की स्थिति–अरुणाचल प्रदेश के विशेष सन्दर्भ में – लखिमा देओरी
- विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण में भाषिक तथा व्याकरणिक संरचनाओं के सम्प्रेषण की चुनौतियाँ – अजय पुर्ती
- हिन्दी भाषा शिक्षण: नई तकनीकें और प्रविधियाँ – ज्योति शर्मा
- अन्य भाषा शिक्षण और विदेशों में हिन्दी शिक्षण – कृष्ण कुमार गोस्वामी
- मॉरिशस में हिन्दी साहित्य-शिक्षण दशा एवं दिशाएँ – कृष्ण कुमार झा
- भारत में बोलियों की लड़ाई और हिन्दी भाषा का भविष्य – दिलीप कुमार सिंह
- महात्मा गाँधी और हिन्दी भारतीय शिक्षा की चुनौतियाँ – निकोला बुआं प्रांसीपातो
- दक्षिण भारत में हिन्दी की स्थिति : सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में – अपर्णा चतुर्वेदी
- दक्खिनी हिन्दी और हिन्दी में अन्तर –डी जयप्रदा
- दक्खिनी हिन्दी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – डी विद्याधर
- हिन्दी और दक्खिनी की भाषाई संरचनागत भिन्नता – शकुन्तलम्मा वाई
- मॉरिशस की हिन्दी पत्रकारिता – स्वाधीनता आन्दोलन के विशेष सन्दर्भ में – कृष्ण कुमार झा
- बहुभाषिकता का महत्त्व और राजभाषा हिन्दी का कार्यान्वयन – जे. आत्माराम
- सूचना प्रौद्योगिकी के युग में मशीनी अनुवाद तन्त्रों की उपादेयता – सुमेध खुशालराव हाडके
- कम्प्यूटरीकृत भाषाविज्ञान और उसके अनुप्रयोग – कृष्ण कुमार गोस्वामी
- हिन्दी वाक्यों में कर्ता अभिज्ञानक –दिब्य शंकर मिश्र
- हिन्दी को विश्वभाषा बनाने में इंटरनेट का प्रदेय – वर्षाराणी सहदेव
- लेखकों का परिचय
लेखकों का परिचय
- प्रोफ़ेसर कृष्णकुमार, गोस्वामी, केंद्रीय हिंदी संस्थान, दिल्ली
- डॉ. लखिमा देओरी, सहायक प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, अरुणाचल विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश, भारत
- डॉ. अजय पुर्ती, जवाहरलाल नेहरू विश्विविद्यालय, नयी दिल्ली, भारत
- डॉ. सुमेध हाडके, तराले लेआउट, समता नगर, वर्धा महाराष्ट्र, भारत
- डॉ. अनुशब्द, सहायक प्रोफेसर, हिंदी विभाग, तेजपुर विश्वविद्यालय, असम, भारत
- डॉ. दिलीप कुमार सिंह, उप प्रबंधक (राजभाषा), राजभाषा विभाग, भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, धनबाद (झारखंड), भारत
- डॉ. जे. आत्माराम, हिन्दी प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश, भारत
- डॉ. ज्योति शर्मा, मानविकी और समाजविज्ञान संकाय, ज़ागरेब विश्वविद्यालय, क्रोएस्या
- श्री दिब्य शंकर मिश्र, प्रौद्योगिकी अध्ययन केंद्र, भाषा विद्यापीठ, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र, भारत
- श्री निकोला बुआँ प्रांसीपातो, इनाल्को, पेरिस, फ्रांस
- डॉ अपर्णा चतुर्वेदी, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, एन.टी.आर. गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज, तेलंगाना, भारत
- डॉ. डी. जयप्रदा, प्राचार्य, भास्कर मॉडल स्कूल, कूकट पल्ली, हैदराबाद, तेलंगाना, भारत
- डॉ. डी. विद्याधर, असोसिएट प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, हिंगी विभाग, विवेक वर्धिनी महाविद्यालय, जामबाग, हैदराबाद, तेलंगाना, भारत
- डॉ. शकुंतलम्मा वाई, पूर्व प्रोफ़ेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, उ.प्र., भारत
- डॉ. कृष्ण कुमार झा, अध्यक्ष, भाषा संसाधन केंद्र, महात्मा गाँधी संस्थान, मोका, मारीशस
- डॉ. जे. आत्माराम, हिन्दी प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद- 500046 (आं.प्र.) भारत
- डॉ. वर्षाराणी सहदेव, कल्याणी कॉलोनी, पेठवडगाँव, कोल्हापुर, महाराष्ट्र, भारत