Hindi Cinema ka Samkal
हिन्दी सिनेमा का समकाल

Hindi Cinema ka Samkal
हिन्दी सिनेमा का समकाल

215.00

Author(s) — C. Bhaskar Rao
लेखक  — सी. भास्कर राव

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 182 Pages | 2022 | 6 x 9 inches |

| Will also be available in HARD BOUND |

Description

पुस्तक के बारे में

…शुक्ला उनमें से सबसे उम्रदार और समझदार है, जो मि. मेहता के यहाँ ड्राइवर है और आये दिन मिसेज मेहता के बददिमाग का शिकार बनता रहता है और इसे लेकर वह भीतर-ही-भीतर कुढ़ता रहता है, लेकिन कुछ कर नहीं पाता है, क्योंकि ड्राइवरी ही उसकी रोजी-रोटी है। यादव एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग का दरबान है और थोड़ा तुनक मिजाजी है। उसका परिवार गाँव में रहता है और उसका बेटा बीमार पड़ जाता है, जिसके इलाज के लिए उसे पाँच हजार रुपयों का प्रबन्ध करना है। वह अपनी बिल्डिंग के सभी वाशिन्दों का दरवाजा खटखटाता है, लेकिन कहीं से भी उसे अपेक्षित मदद नहीं मिलती है। वह निराशा और हताशा की स्थिति में एक दिन सड़क के किनारे किसी टी स्टाल के पास बैठा रहता है कि तीन गुंडे किस्म के लोग उसे छेड़ते हैं। उससे झल्लाकर वह एक को जोरदार झापड़ मार देता है, जिससे वह बेहोश हो जाता है और उसके शेष दोनों साथी उसे छोड़कर भाग जाते हैं। कुछ समझ में न आने की स्थिति में उस बेहोश व्यक्ति को वह अपनी खोली में घसीट लाता है और तीनों दोस्त उसके होश में आने का इन्तजार करते हैं। उनका तीसरा साथी अमन है, जो एक रेस्त्रां में बेयरा है और वह वहाँ अक्सर आने वाली एक विदेशी लड़की से प्रेम करने लगता है। अमन युवा है। तीनों में सबसे कम उम्र का। यादव बीच की उम्र का है।
तीनों मिलकर यह तय करते हैं कि उस अनजान बेहोश व्यक्ति को किसी सड़क के किनारे छोड़ देंगे। यही वे करते भी हैं, लेकिन इसी बीच यादव उस व्यक्ति के पिता से फ़ोन पर सम्पर्क करता है और तीस हजार फिरौती की माँग कर बैठता है। यह रकम उसके पिता आकर यादव को सौंप देते हैं और यादव उसके तीन हिस्से करता है। वह अपने घर पाँच हजार रुपए भेज देता है। अमन को वह दस हजार देता है।

…इसी पुस्तक से…

सी. भास्कर राव, हिन्दी के एक वरिष्ठ लेखक हैं। हिन्दी गद्य की विभिन्‍न विधाओं में अब तक इनकी पचास के लगभग पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। साहित्य और सिनेमा, इनके लेखन के दो प्रमुख आधार हैं। हिन्दी सिनेमा पर उनकी अब तक लगभग दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। दादा साहब पुरस्कार विजेताओं पर अब तक दो खंडों में प्रकाशित इनकी पुस्तकों की काफी चर्चा होती रही है। सिनेमा के सौ वर्ष पूरे होने पर इन्होंने हिन्दी की सौ श्रेष्ठ फ़िल्मों पर तीन खंडों में जो पुस्तकें लिखीं, वे काफी प्रशंसनीय मानी जाती हैं।
प्रस्तुत पुस्तक उनकी अब तक लिखी गयी अन्य पुस्तकों से भिन्‍न है। इसकी पहली विशेषता यह है कि 2008 से लेकर 2020 तक रिलीज हुई अनेक चर्चित-अचर्चित हिन्दी फ़िल्मों पर परिचयात्मक टिप्पणियाँ लिखी गयी हैं और इसकी दूसरी विशेषता यह है कि हिन्दी की ऐसी चालीस फ़िल्मों के अलावा उन्होंने परिशिष्ट में दस ऐसी फ़िल्मों पर अपनी सार्थक प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिनमें कुछ भारतीय भाषाओं के साथ विदेशी फ़िल्में भी सम्मिलित हैं।
इन दोनों आधारों पर यह पुस्तक महत्त्वपूर्ण बन जाती है। आशा है कि सिनेमा प्रेमी और दर्शक इस पुस्तक का स्वागत करेंगे। इन फ़िल्मों की न तो विस्तृत शास्त्रीय समीक्षायें लिखी गयी हैं और न ही इनका परिचय चालू और चलताऊ ढंग से किया गया है, बल्कि सहज-सरल भाषा में इन तमाम फ़िल्मों की खूबियों और कमियों से हिन्दी के सुधी दर्शकों-पाठकों का साक्षात्कार कराया गया है। हिन्दी में या तो फ़िल्मों पर लम्बी-चौड़ी शास्त्रीय समीक्षायें मिलती हैं या सिने पत्र-पत्रिकाओं में बहुत संक्षिप्त परिचय मिलता है और सामान्यत: दर्शकों को आकर्षित करने के लिए उनका रेटिंग करते हुए अति सामान्य टिप्पणियाँ मिलती हैं, जिनका उद्देश्य दर्शकों को सिनेमा घरों तक खींचकर लाना होता है, लेकिन सी.भास्कर राव एक ऐसे हिन्दी समीक्षक माने जाते हैं, जिन्होंने दर्शकों और पाठकों को हमेशा सुरुचिपूर्ण समीक्षाओं के द्वारा कुछ इस रूप में ऐसी फ़िल्मों से साक्षात्कार कराया है कि जिन्होंने वे फ़िल्में देखी हैं, उन्हें उनके विषय में पढ़ने और जानने का अवसर और आयाम मिले और जिन्होंने वे फ़िल्में नहीं देखी हैं, उन्हें फ़िल्म देखने का-सा अनुभव प्राप्त हो। यही हिन्दी सिनेमा पर अब तक लिखी गयी उनकी पुस्तकों की विशेषता रही है और इस पुस्तक में भी इस विशेषता का स्पष्ट और सार्थक परिचय मिलता है, इसलिए इसका स्वागत अवश्य होगा यह विश्‍वास है।

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