Author(s) — Braj Kumar Pandey
लेखक — व्रज कुमार पांडेय
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 107 Pages | 2022 | 6 x 9 inches |
| Will also be available in HARD BOUND |
₹185.00
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लोहिया के अनुसार, स्थानीय स्तर पर लोकतन्त्र का अर्थ चुनी हुई पंचायत के प्रति शासन का अनिवार्य दायित्व है। वे गाँव से लेकर राष्ट्र तक की सभी पंचायतों का आदर करते हैं। राज्य की बाहरी कार्य-प्रणाली उसके दलों की आन्तरिक कार्य-प्रणाली से निर्धारित होती है। देश में लोकतन्त्र तभी मरता है, जब यह पहले कुछ प्रमुख राजनीतिक संगठनों में मर चुका होता है। अत: दलों का आन्तरिक लोकतन्त्र महत्त्वपूर्ण है। लोकतान्त्रिक दलों में अनुशासन के नाम पर भाषण की स्वतन्त्रता पर कभी रोक नहीं लगनी चाहिए। लोकतन्त्र में अनुशासन का अर्थ उच्चतर समितियों या व्यक्तियों का आज्ञा-पालन नहीं है। इसका अर्थ व्यक्तियों और समितियों के सीमित अधिकारों को मानना और स्वीकार करना है, चाहे वे ऊँचे हों या नीचे। जहाँ तानाशाह दल अपने निर्णय केवल जनता के सामने घोषित करते हैं, लोकतान्त्रिक दल बहस जनसाधारण के सामने करते हैं। लोहिया ने सामाजिक समता का प्रतिपादन सशक्त ढंग से किया है। उन्होंने समस्त सामाजिक विषमताओं के विरुद्ध विद्रोह की आवाज बुलन्द की। ये हैं–जाति-प्रथा, नर-नारी की असमानता, अस्पृश्यता, भाषा, रंग-भेद नीति, साम्प्रदायिकता, व्यक्ति-व्यक्ति में आय-व्यय, रोटी-रोजी, न्याय-अन्याय की विषमता। उनके अनुसार, आर्थिक विषमता और जाति-पाँति जुड़वा राक्षस हैं। अत: यदि एक से लड़ना है तो दूसरे से भी लड़ना जरूरी है। जाति-पांति के कारण भारत का समग्र जीवन निष्प्राणता का शिकार हो गया है। भारत की एक हजार वर्ष की दासता का कारण जाति-प्रथा है, आन्तरिक झगड़े और छल-कपट नहीं। जाति-प्रथा ने भारी जनसंख्या को सामाजिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक और राजनीतिक दृष्टि से पंगु बना दिया है। फलत: यह सार्वजनिक प्रयोजनों और देश की रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों के प्रति उदासीन बनी रही हैं। जाति-प्रथा नब्बे प्रतिशत को दर्शक बनाकर छोड़ देती है, वास्तव में देश की दारुण दुर्घटनाओं के निरीह और लगभग पूर्णतया उदासीन दर्शक। जाति-प्रथा के उन्मूलन के लिए लोहिया ब्रह्मज्ञान और अद्वैतवाद की दृष्टि, आर्थिक उद्धार, सामाजिक और राजनीतिक क्रान्तियों पर निर्भर करते हैं। वे पिछड़ी जातियों को केवल नेतृत्व के पदों पर आसीन नहीं करना चाहते, बल्कि उनकी आत्मा को जाग्रत करना और उनमें अधिकार की भावना पैदा करना चाहते हैं।
…इसी पुस्तक से…
मार्के की बात है कि जर्मनी से शिक्षा प्राप्त कर लौटने के बाद डॉ. लोहिया ने कुछ समय तक बिड़ला बन्धुओं में से एक रामेश्वर दास बिड़ला के निजी सचिव सह-चीनी मिल निरीक्षक के रूप में एक वर्ष तक नौकरी की और मूलत: मारवाड़ी होने के कारण उनकी रिश्तेदारियाँ व्यापारियों के साथ थीं। इनके बावजूद उन्होंने कभी किसी भारतीय सेठ का वित्त-पोषण स्वीकार नहीं किया। इसके विपरीत जय प्रकाश नारायण, अशोक मेहता और मीनू मसानी के बारे में यह बात नहीं कह सकते। जय प्रकाश नारायण पर लिखित नागार्जुन की मैथिली कविता “आज्क महाकारुणिक बुद्ध” (साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कविता-संग्रह “पत्रहीन नग्न गाँछ” में शामिल) को पढ़कर बहुत कुछ जान सकते हैं। इतना ही नहीं ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के दौरान जयप्रकाश नारायण ने स्वयं ‘एवरीमैन्स वीकली’ में स्वीकार किया कि अमेरिका से शिक्षा प्राप्त कर भारत लौटने के बाद गाँधी जी की सिफारिश पर घनश्याम दास बिड़ला ने उन्हें अपना निजी सचिव बनाया। लगभग एक या दो साल के बाद उन्होंने जब नौकरी छोड़ी, तब से आजीवन बिड़ला जी पूरी तनख्वाह मुद्रास्फीति का ध्यान रखकर देते रहे। इतना ही नहीं, डालमिया-जैन के घोटाले की जाँच के लिए नियुक्त उच्चतम न्यायालय के जज विवियन बोस की अध्यक्षता में गठित आयोग की रिपोर्ट में जयप्रकाश नारायण की गवाही पर खेदजनक टिप्पणियाँ हैं। मगर लोहिया के ऊपर सेठों का हितैषी होने तथा जातिवाद के दलदल में धँसने का कोई आरोप नहीं लग सकता।
…इसी पुस्तक से…
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Curcumin induces re expression of BRCA1 and suppression of Оі synuclein by modulating DNA promoter methylation in breast cancer cell lines cialis and viagra sales Light microscopy, hematoxylin and eosin staining