Daridra Narayan & Rajat Ratain
दरिद्र नारायण व रजत रातें

237.00350.00

Author(s) — Fyodor Dostoyevsky
लेखक  — फ़्योदर दसतायेव्स्की

 Translator(s) (English to Hindi) —  Omkarnath Panchalar & Madan Lal Madhu
अंग्रेजी से अनुवाद — ओंकारनाथ पंचालर व मदनलाल ‘मधु’

Editor(s) — Anil Janvijay
सम्पादक  — अनिल जनविजय

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 176 Pages | | 6.125 x 9.25 inches |

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Description

पुस्तक के बारे में

‘दरिद्र नारायण’ फ़्योदर दसतायेव्स्की द्वारा 21 साल की उम्र में लिखी गई पहली रचना है, जिसमें उन्होंने एकदम निम्न वर्ग के लोगों के जीवन और उनकी मनःस्थिति का चित्रण किया है और समाज की तलछट माने जाने वाले एक ग़रीब और तुच्छ व्यक्ति को एक ऐसे आदमी में बदल दिया है, जो गहरे सम्मान के योग्य है। एक गरीब लड़की के प्यार में पड़कर कथा के नायक के मन में आत्म-सम्मान की भावना पैदा होती है। दसतायेव्स्की बचपन से ही समाज के हीन और नगण्य वर्ग के प्रति सहानुभूति रखते थे। वे फ़्रांसीसी लेखक बालजॉक की रचनाओं पर फ़िदा थे। कहना चाहिए कि उनका आरम्भिक लेखन बालजॉक की रचनाओं से बेहद प्रभावित है। उन्होंने क़रीब चार वर्ष तक अपनी इस पहली रचना में लगातार सुधार और संशोधन किए। 1846 में ‘दरिद्र नारायण’ पहली बार रूसी भाषा में प्रकाशित हुई। रूस में तब तक ग़रीबी और समाज के छोटे आदमियों को लेकर कोई रचना सामने नहीं आई थी। दसतायेव्स्की ने अपनी इस उपन्यासिका में यह बताया था कि ग़रीब लोग भी समाज के जीवन का एक हिस्सा होते हैं। उनमें भी सोचने-समझने, महसूस करने और ख़ुद को व्यक्त करने की क्षमता होती है, इसलिए समाज के दूसरे वर्गों को उनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

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‘रजत रातें’ दसतायेव्स्की की दूसरी रचना है, जो 1848 में सामने आई थी। इस उपन्यासिका के विषय हैं — मनुष्य के जीवन में प्रेम, अकेलापन और जीवन के अर्थ की खोज करने की आदमी की कोशिशें। हालाँकि यह रचना उन स्वप्नदर्शी एकाकी युवा लोगों की कहानी है, जो एक आभासी भ्रामक दुनिया में रहते हैं, और जो वास्तविक जीवन की स्थितियों और अकल्पनीय भावनाओं से भी दो-चार होते रहते हैं।
यह उपन्यासिका पढ़ने के बाद पाठक पर भी निराशा और अवसाद का ऐसा कोहरा छा जाता है, जिससे मुक्त होने में उसे कुछ समय लगता है।

– अनिल जनविजय

 

 

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