Author(s) — Jitendra Verma
लेखक – जीतेन्द्र वर्मा
Bhojpuri Sahitya ke Samajik Sarokar
भोजपुरी साहित्य के सामाजिक सरोकार
₹180.00 – ₹270.00
| ANUUGYA BOOKS | BHOJPURI | 2021 |
Description
पुस्तक के बारे में
आधुनिक इतिहासकार लोग मालवा के राजा भोजदेव भा उनका वंशजन के द्वारा भोजपुर विजय पर सन्देह व्यक्त कइले बा। एह पर विचार करत दुर्गाशंकर सिंह नाथ लिखले बानी कि (मालवा के भोज) “भोजपुर भोजदेव पूर्वी प्रान्त में कभी नहीं आये।”
दूसरा मत के अनुसार एकर नामकरण वेद से जोड़ल गइल बा। वेद में भोज शब्द के प्रयोग मिलेला। एह मत के समर्थन में डॉ. ए. बनर्जी शास्त्री, रघुवंश नारायण सिंह, जितराम पाठक के नाँव प्रमुख बा।
असल में ई मत पुनरुत्थानवादी मानसिकता के देन हवे, जवना में हवाई जहाज बनावे से लेके परमाणु बम सबकर उत्स वेद में साबित कइल जाला। कुछ लोग के इहो बुझाला कि कवनो चीज के प्राचीन सिद्ध कऽ देला से ओकर महत्त्व बढ़ जाला, ऊ स्वतः प्रामाणिक हो जाला। एही मानसिकता के लोग भोजपुरी के उत्स वेद में सिद्ध करेला।
एकरा बारे में एगो तीसरो मत बा जवना के मुताबिक भोजपुरी भाषा के नामकरण कन्नौज के राजा मिहिरभोज के नाम से जुड़ता। एह मत के अनुसार राजा मिहिर भोज के नाँव पर भोजपुर बसल रहे। एह मत के पक्षधर पृथ्वी सिंह मेहता, परमानन्द पाण्डेय आदि बा लोग। परमानन्द पाण्डेय के अनुसार “गुर्जर प्रतिहारवंशी राजा मिहिरभोज का बसाया हुआ भोजपुर आज भी पुराना भोजपुर नाम से विद्यमान है।” मिहिर भोज के शासन-काल सन् 836 ई. के आस-पास मानल जाला।
राहुल सांकृत्याययन भोजपुरी के ‘मल्ली’ आ ‘काशिका’ दूगो नाँव देले रहीं। असल में उहाँ के प्राचीन गणराज्यन (सोरह महाजनपद) के व्यवस्था से सम्मोहित रहीं। एही से उहाँ के महाजनपद के नाँव पर ओजवाँ के भाषा के नाँव रखे के चाहत रहीं। बिहार के दूगो भाषा अंगिका आ वज्जिका के नामकरण उहें के कइल ह। अंग नाँव के महाजनपद के नाँव पर ओजवाँ के भाषा के नाँव उहाँ के अंगिका रखनी। एकरा पहिले जार्ज अब्राहम ग्रिर्यसन अंगिका के मैथिली के अन्तर्गत रखले रहीं बाकिर एकर स्वतन्त्र भाषिक विशेषतो कावर उहाँ के ध्यान गइल रहे। एही से उहाँ के अंगिका के मैथिली के ‘छींका-छाकी’ रूप कहले बानी।
इसी पुस्तक से…
एह किताब में भोजपुरी के सब पक्ष पर विमर्श भइल बावे। भोजपुरी के नामकरण, क्षेत्र, मानकीकरण, विदेशन में भोजपुरी के स्थिति से धइले कबीर, राहुल सांकृत्यायन, भिखारी ठाकुर, महेंद्र मिसिर, गोरख पांडेय सहित साहित्य के आउर पक्षन पर विचार-विमर्श भइल बावे। जीतेन्द्र वर्मा भोजपुरी के संगे-संगे हिंदी में आ थोड़ बहुत अंग्रेजी में भी लेखन करेनी। बाकिर सबमें जवन चीझ कॉमन बा उ हवे सामाजिक सरोकार। एह किताब के शुरुआत सामाजिक सरोकार से जुड़ल रचनन से होता।
– धर्मेंद्र सुशांत
Additional information
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