Author(s) — Rajiv Ranjan Giri
लेखक राजीव रंजन गिरि
| ANUUGYA BOOKS | HINDI|
| available in HARD BOUND & PAPER BACK |
₹350.00 – ₹525.00
| available in HARD BOUND & PAPER BACK |
पुस्तक के बारे में
राजीव रंजन गिरि ने गम्भीर चिंतन-मनन की क्षमता अर्जित की है जिसका एक नमूना है उनका यह महत्वाकांक्षी महाकाय आलोचना ग्रन्थ।
— प्रो. रेवती रमण, किताब
अपने वैविध्य विस्तार में राजीव रंजन गिरि ने ऐसेे कई पक्षों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है जो अमूमन परिदृश्य के ओट में चले जाते हैं।
— प्रो. कर्मेन्दु शिशिर, सबलोग
लेखक संगठनों और साहित्यिक विमर्शों को प्रत्यक्ष सामाजिक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने की कोशिश कई आलेखों में है; फलस्वरूप इस पुस्तक में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट से लेकर हिंदी में आर्थिक चिंतन जैसे मुद्दे भी शामिल हो सके हैं। वस्तुत: राजीव साहित्य को उसके सामाजिक परिप्रेक्ष्य से अलगाकर देखनेवालों में से नहीं हैं। यही वजह है कि मुख्यत: साहित्यिक होते हुए भी अन्य अनुशासनों से मदद लेते हैं ।
— धर्मेन्द्र सुशांत, पुस्तक संस्कृति
अथ से राजीव के अध्ययन की गहराई, वैचारिक प्रौढ़ता; समय, समाज और संस्कृति की समझ का पता चलता है।… राजीव की आलोचकीय स्थापनाएं संवेदनापूर्ण वैचारिक प्रखरता और रचनात्मक निष्पक्षता से संपृक्त हैं।
— सुनील कुमार पाठक, जनसत्ता
समाज और संस्कृति की पुरानी-नयी धारणाओं तथा प्रवृतियों का लेखा-जोखा। पूर्वग्रह मुक्त होकर सत्य का अन्वेषण।
— डॉ. नामदेव, प्रगतिशील वसुधा
वैविध्यपूर्ण सामग्री एवं विविध विषयों पर लिखे इन विचारपूर्ण लेखों की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण, पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक। भिन्न – भिन्न समयों को देखती, उनसे बात करती, सवाल उठाती, जिरह करती एवं संवाद करती, शोध प्रविधियों से लैस तथ्यपरक पुस्तक।
— अनुपमा शर्मा, परिकथा
हिंदी साहित्य को समग्र रूप से एक नए आलोचनात्मक एवं समीक्षात्मक दृष्टिकोण से देखने के लिए एक जरूरी किताब।
— अमलेश प्रसाद, युद्धरत आम आदमी
इस पुस्तक से राजीव रंजन गिरि की आलोचना की व्यापकता का पता चलता है। साहित्य से लेकर दुनिया भर के अद्यतन विमर्शों तक वे सधे अंदाज में सतर्क और वस्तुपरक आलोचना करते हैं। इसके लिए वे ज्ञान के दूसरे अनुशासनों – इतिहास, समाजशास्त्र आदि – का भी सहारा लेते हैं। उनके पास इस लायक एक सर्जनात्मक भाषा भी है जिस कारण पुस्तक बेहद दिलचस्प, विचारोतेजक एवं पठनीय है।
— अनीश अंकुर, पाखी
विचार-विमर्श, शोध, समीक्षा, टिप्पणी और पिछले एक दशक में सर्जनात्मकता के स्तर पर हुयी पहल की विद्वतापूर्ण बौद्धिक पड़ताल। रचनात्मकता और वैचारिक ऊष्मा से परिपूर्ण एक सशक्त हस्तक्षेप।
— रणजीत यादव, हंस
विषय की विविधता, व्यापकता, भाषा और शैली के आधार पर महत्वपूर्ण संकलन।
— ब्रजकिशोर झा, राष्ट्रीय सहारा
भक्ति आंदोलन से लेकर समकालीन हिंदी साहित्य पर विश्लेषणपरक नजर।
— हिंदुस्तान
सुंदर विचारों के लिए श्रम।
— आउटलुक
एक आलोचक के निर्माण का मुकम्मल साक्ष्य। उनकी आलोचकीय प्रतिश्रुति।
— पुस्तक वार्ता
विविध आयामी अर्थवत्ता के कारण एक सृजनात्मक परखधर्मी साहित्यिक हस्तक्षेप।
— समालोचन
साहित्य के नए विमर्शों का वस्तुपरक मूल्यांकन। वर्तमान हिंदी साहित्य की एक मुकम्मल तस्वीर।
— हमरंग.कॉम
पठनीय और संग्रहणीय। साहित्य को बहुआयामी कोण से देखने, समझने और सोचने हेतु सहायक।
— आजकल
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