ADIVASI DESHAJ SAMVAD (Collection of Interviews of Tribal and Non Tribal Writers)
आदिवासी देशज संवाद (आदिवासी व गैर आदिवासी लेखकों के साक्षात्कार)

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आदिवासी देशज संवाद (आदिवासी व गैर आदिवासी लेखकों के साक्षात्कार)

ADIVASI DESHAJ SAMVAD (Collection of Interviews of Tribal and Non Tribal Writers)
आदिवासी देशज संवाद (आदिवासी व गैर आदिवासी लेखकों के साक्षात्कार)

290.00399.00

Editor(s) — Savitri Baraik
संपादन  — सावित्री बड़ाईक

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 211 Pages | 5.5 x 8.5 inches |

| Book is available in PAPER BACK & HARD BOUND |

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Description

पुस्तक के बारे में

आदिवासी देशज लेखकों, विचारकों, चिन्तकों को इस पुस्तक में लाने का मकसद यह है कि वर्तमान और आने वाली पीढ़ी समकालीन और प्रसिद्ध लेखकों के रचनाकर्म और चिन्तन, साहित्यिक अवदानों से परिचित होंगे। साथ ही लेखकों के जीवन और उनकी चुनौतियों से परिचित होंगे। पाठकों में नयी चेतना विकसित होगी और उन्हें नयी दृष्‍टि मिलेगी। उनमें रचने, गढ़ने, लिखने की रुचि जागृत होगी। वे कला और लेखन में भी अपनी अच्छी उपस्थिति दिखा पायेंगे। शोधार्थी, आदिवासी विद्यार्थी अपने अंदर के कवि, कथाकार, उपन्यासकार को उत्प्रेरित कर पायेंगे। ऐसी आशा करती हूँ। यह किताब निश्‍चय ही आदिवासी साहित्य में रुचि रखने वाले अध्येताओं, पाठकों, शोधार्थियों को रमणिका गुप्ता, रामदयाल मुण्डा, रोज केरकेट्टा, वाल्टर भेंगरा, शिशिर टुडू, ग्रेस कुजूर, गणेश नारायण देवी, हरिराम मीणा, येशे दोर्जे थोंग्छी, महादेव टोप्पो, रणेन्द्र, रूपलाल बेदिया को एक साहित्यकार, लेखक, चिन्तक, कवि के रूप में जानने, उनके समय की हलचलों-परिवर्तनों और संघर्षों-आन्दोलनों से रू-ब-रू होने के लिए आमंत्रित करेगी। साथ ही रचनाकारों से जुड़े कई रोचक प्रसंग, अछूते विषयों से परिचित होने का सुअवसर प्रदान करेगी। निश्‍चय ही इस पुस्तक में प्रकाशित साक्षात्कारों, संवादों के द्वारा आदिवासी क्षेत्र के साहित्यिक, सामाजिक परिवेश को उजागर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। आदिवासी साहित्य के बहुपठित एवं प्रतिबद्ध रचनाकारों, चिन्तकों से ‘आदिवासी देशज संवाद’ के जरिए प्रस्तुत पुस्तक के द्वारा बारह रचनाकारों, कवियों, चिन्तकों और लेखकों के नजरिए से आदिवासी समाज और साहित्य को समझा जा सकता है। पाठक में यह समझ भी विकसित होगी कि आदिवासी साहित्य इंसानियत के साथ संपूर्ण समष्‍टि को बचाने की बात करता है। इस किताब के द्वारा रचनाकारों के लेखकीय व्यक्तित्व के विविध आयामों से परिचित होने का अवसर मिलेगा।

मुझे 2017 में महात्मा गाँधी अन्तर्राष्‍ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय के एम.ए. हिन्दी के दूरस्थ पाठ्‍यक्रम की तीन इकाईयों को लिखने की जिम्मेदारी मिली थी, जिसके लिए मुझे कवयित्री ग्रेस कुजूर और कथाकर रोज केरकेट्टा से लम्बी बातचीत करनी पड़ी। उनकी रचना प्रक्रिया को समझने के लिए मुझे बार-बार उनसे मिलना पड़ा। उनके कार्यक्षेत्र एवं उनकी साहित्यिक, सांस्कृतिक अवदानों को पूर्णत: समझने के लिए भी यह बातचीत जरूरी थी।
कथाकार रोज केरकेट्टा ‘आधी दुनिया’ पत्रिका की सम्पादक भी हैं। अत: संवाद कार्यालय भी बार-बार जाना हुआ। वहाँ शिशिर टुडू से साहित्यिक और पत्रकारिता सम्बन्धी गम्भीर बातचीत होती थी। बाद में उनकी तबीयत खराब रहने लगी। परन्तु मैं इस बातचीत का दस्तावेजीकरण करना चाहती थी। अत: शिशिर दा से लगातार मिलती रही और उन्हें अपने प्रश्‍नों से अवगत कराती रही। उन्होंने भी अपने साक्षात्कार में कई महत्त्वपूर्ण अनछुए बिन्दुओं को उजागर किया है। शिशिर दा ने मेरे प्रश्‍नों का लिखित उत्तर दिया। यह सम्भवत: उनका पहला इन्टरव्यू है। इसमें उन्होंने अपनी रचनाशीलता, जीवन अनुभव और ऐसे हुआ ‘हूल’ पुस्तक पर विस्तार से गम्भीरतापूर्वक विचार किया है।
प्रसिद्ध रचनाकार और चिन्तक हरिराम मीणा के साक्षात्कार के लिए मैंने प्रसिद्ध लेखक और प्रोफेसर प्रमोद मीणा से निवेदन किया कि वे उनके दीर्घ रचनात्मक जीवन पर साक्षात्कार किसी शोधार्थी को लेने के लिए कहें। मुझे यह नि:संकोच स्वीकार करना पड़ेगा कि प्रोफेसर प्रमोद मीणा ने मुझे बहुत कम समय में हरिराम मीणा का साक्षात्कार भेज दिया। मैं उनके प्रति हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ।
पूर्वोत्तर से मुझे आदिवासी लेखक, चिन्तक की कम से कम एक साक्षात्कार की आवश्यकता थी। कवयित्री, कथाकार, सहायक प्रोफेसर जमुना बीनी तादर ने अपने व्यस्त समय से कुछ समय निकालकर प्रसिद्ध लेखक येशे दोरजे थोंग्छी का बहुउपयोगी साक्षात्कार लिया। इस साक्षात्कार से पूर्वोत्तर के लेखक भी संवाद में शामिल हो पाये हैं। जमुना बीनी तादर मुझे आन्यी बुलाती हैं, जिसका अर्थ बहन होता है। बहन जमुना के प्रति आभार प्रकट करती हूँ।
प्रसिद्ध उपन्यासकार, कथाकार, कवि, चिन्तक, लेखक रणेन्द्र जी से साक्षात्कार, सहायक प्रोफेसर जनार्दन गोंड और मैंने लिया है। मैं जनार्दन गोंड के प्रति विशेष आभारी हूँ, जिन्होंने इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के व्यस्ततम दिनचर्या से और बहुप्रतीक्षित उपन्यास ‘पहाड़गाथा’ लिखने से समय चुराकर रणेन्द्र जी का लम्बा साक्षात्कार लेने में मेरी मदद की। जिससे इस ‘आदिवासी देशज संवाद’ पुस्तक में अधिक चिन्तनपरक साक्षात्कार शामिल हो पाया।
मैंने ग्रेस कुजूर, रोज केरकेट्टा, शिशिर टुडू, महादेव टोप्पो, वाल्टर भेंगरा, रूपलाल बेदिया का साक्षात्कार लिया है। रणेन्द्र जी का साक्षात्कार मैंने और जनार्दन ने मिलकर लिया है। मैं उनसे पिछले दस सालों में राँची में होने वाले विभिन्‍न साहित्यिक कार्यक्रमों में मिलती रही हूँ। कथाकार वाल्टर भेंगरा को 2017 में ‘अयोध्या प्रसाद खत्री’ सम्मान से सम्मानित किया गया। उसी समय उनसे साक्षात्कार लेने की योजना बनी थी। वॉल्टर भेंगरा ने काफी पहले साक्षात्कार दे दिया था। वे इस किताब के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक भी हैं। कथाकार रूपलाल बेदिया ने अपने व्यस्ततम ऑफिस के कार्यों से, कथालेखन से समय निकालकर मेरे द्वारा भेजे गये प्रश्‍नों का रोचक ढंग से उत्तर दिया है। उनके साथ भी मेरी लगातार बातचीत होती रही। उनके प्रति मैं आभारी हूँ।
इस किताब में सबसे लम्बा साक्षात्कार कवि-लेखक, चिन्तक महादेव टोप्पो का है। साहित्य अकादमी का सदस्य बनने के बाद मैंने एक प्रश्‍न और भेजा गया है। उनकी चिन्तनपरक, विचारपरक लेखन से हमारी पीढ़ी के साथ अगली पीढ़ी के पाठक भी निश्‍चित रूप से लाभान्वित होंगे। उनके प्रति मैं विशेष आभार प्रकट करती हूँ। मैं उन्हें लगातार प्रश्‍न भेजती थी और लगातार बातचीत भी करती थी। उन्होंने रचनात्मक सक्रियता से समय निकालकर मेरे द्वारा भेजे गये प्रश्‍नों का गम्भीर उत्तर दिया है।

– सावित्री बड़ाईक

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